यह जो है नींद;
क्या है!
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हमारी पूरी ज़िन्दगी का शायद एक तिहाई समय तो नींद में बीत जाता होगा, फिर भी हम तो क्या बड़े बड़े साइन्टिस्ट तक अभी तक इसे ठीक से नहीं जान पाए होंगे, कि यह नींद है क्या! यद्यपि पातञ्जल योगदर्शन में निद्रा को वृत्ति कहा गया है किन्तु निद्रा के स्वरूप को इस प्रकार से परिभाषित किया गया है --
अभाव-प्रत्यययालम्बना वृत्तिर्निद्रा।।१०।।
(समाधिपाद)
यद्यपि निद्रा को माण्डूक्य उपनिषद् में जिस तरह से परिभाषित किया गया है वह भी दृष्टव्य है --
यत्र सुप्तो न कञ्चन कामं कामयते न कञ्चन स्वप्नं पश्यति तत्सुषुप्तम्। सुषुप्त स्थान एकीभूतः प्रज्ञानघन एवानन्दमयो ह्यानन्दभुक्चेतोमुखः प्राज्ञस्तृतीयः पादः।।५।।
तात्पर्य यह कि मन अर्थात् चेतना (consciousnesses) / ध्यान (attention) जहाँ न तो किसी कामना से संलग्न होती है न किसी स्वप्न को देखती है वह मन की सुषुप्त अवस्था है। यह सामान्य मनुष्य की सुषुप्ति का वर्णन हुआ।
श्रीमद्भगवद्गीता में एक ही श्लोक में, सुषुप्ति का वर्णन दो रूपों में किया गया है --
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनिः।।६९।।
(अध्याय २)
यह भी कहा जा सकता है कि उपरोक्त श्लोक में निद्रा का तो नहीं, जागृति के ही दो प्रकारों का वर्णन किया गया है!
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