Monday 27 June 2022

कल की बातें

बीते कल 27-06-2022 की बात

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समय कैसे अस्तित्व में आता है। 

कल इसी विषय में कुछ क्लिष्ट प्रतीत होनेवाली संस्कृत रचना को इस ब्लॉग में  पोस्ट किया था। 

समय या काल वास्तव में क्या है, यद्यपि हम नहीं ठीक से जान सकते किन्तु इसके बारे में हमारी जो कल्पना है, उसके आधार पर यह तो तय है, कि समय की हमारी यह मान्यता अवश्य ही बहुत उपयोगी है।

यह समय क्या है, इसका वास्तविक स्वरूप क्या है इस विषय में आज की अधुनातन और नई से नई वैज्ञानिक खोज से भी कुछ सुनिश्चित निष्कर्ष प्राप्त होता दिखाई नहीं दे रहा है।

किन्तु यह तो तय है कि समय के साथ बुद्धि बदलती है या इसे यूँ भी कह सकते हैं कि बुद्धि के अनुसार समय और समय का आकलन बदलता रहता है। इनमें से कोई भी हमारे वश में नहीं है। हमें नहीं पता कि क्या समय के अस्तित्व में आने के बाद ही  बुद्धि जाग्रत होती है, या बुद्धि के उदय होने पर ही समय / काल का अनुमान किया जाता है। 

शुद्ध भौतिक विज्ञान के आधार पर घटनाओं के बीच किसी क्रम (pattern) की कल्पना करते हुए 'पहले' और 'बाद में' के रूप में समय / काल time को परिभाषित किया जाता है, और वह पूर्णतः तर्कसम्मत (logical) और तर्कसंगत (rational) भी है इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। समस्त विज्ञान इसी आधार पर प्रयोग की पुनरावृत्ति से किसी ऐसे अटल सत्य को निष्कर्ष के रूप में प्राप्त और स्थापित करने का प्रयास करता है जिसे नित्य कहा जा सके। संक्षेप में, विज्ञान भी किसी ऐसे सत्य की खोज में जाने अनजाने ही संलग्न है जो कि समय के बदलने से प्रभावित न होता हो, -जो समय के साथ बदलता न हो। ऐसा कोई सत्य स्वरूपतः क्या कोई वैचारिक या बौद्धिक वक्तव्य हो सकता है? क्योंकि विचार का जन्म बुद्धि से होता है और बुद्धि समय के साथ बदलती है। किन्तु बुद्धि का कार्य कब, और कहाँ से प्रारंभ होता है, इसे जानने का उपाय हमारे पास नहीं है। फिर भी हमारे पास यह प्रत्यक्ष उपाय अवश्य है कि इस संपूर्ण व्यक्त अस्तित्व (phenomenal existence) में नित्य क्या है इसे जानने का यत्न करें। यहाँ सब कुछ अनित्य (transient / impermanent) ही तो है। अनित्यता (intransiency) के बीच एक क्रम pattern किसी विषय में खोजकर और उसे  स्थापित कर उसे ही समय का नाम दिया जाता है, जो है व्यतीत होनेवाला समय, किन्तु इसका आधारभूत एक समय वह भी तो है जो कि व्यतीत नहीं होता जिसे हम शाश्वत कहते हैं। क्या वह शाश्वत समय भी अनित्य है, या हो सकता है!

तात्पर्य यह है कि समय को परिभाषित किया जाना आवश्यक है और निःसन्देह इसका उपयोग तो है ही, किन्तु वह समय और उसका कार्यक्षेत्र अत्यन्त सीमित होता है और व्यक्ति और समूह के अनुसार ही परिभाषित / तय होता है। उसे व्यतीत होनेवाला समय (passing time) कह सकते हैं।

इस प्रकार समय अवश्य ही एक ऐसा तत्व है जिसका स्वरूप न तो वर्णित किया जा सकता है, और जिसे न ही समझा या ग्रहण किया जा सकता है। अकल्पनीय (incomprehensible), अनिर्वचनीय (indescribable), अग्राह्य (that couldn't be grasped) - किन्तु वह जिस भूमि (ground) पर स्थित है उस आधारभूत सिद्धान्त (underlying principle) की सत्यता असंदिग्ध है और वह दृश्य या व्यक्त (phenomenal) नहीं, स्वयं दृष्टा ही है जो सबमें है, जिसमें सब है, जो सर्वत्र है, जिसमें सर्वत्र है, जिसका कभी अभाव नहीं हो सकता, जो कभी अविद्यमान नहीं होता। इसलिए वह अभी - now, - नित्य और सदा - always, अतीत -past, वर्तमान -present, और वह भविष्य - future, भी है! किन्तु फिर उसे 'वह' भी कैसे कहा जा सकता है! वह तत्व हममें और हम उसमें ही नित्य विद्यमान हैं। किन्तु वैयक्तिक बुद्धि का कार्य प्रारंभ होते ही समस्त दृश्य ऐसा जगत् प्रतीत होने लगता है जिसे अपने आपसे पृथक् और स्वतंत्र समझ लिया जाता है।

दृष्टा पुनः कोई विशेष व्यक्ति नहीं बल्कि वह एकमेव वैश्विक चेतना (consciousness) है जिसे पातञ्जल योग-सूत्र के साधनपाद के इस सूत्र से समझा जा सकता है :

दृष्टा दृशिमात्रः शुद्धोऽपि प्रत्ययानुपश्यः।।२०।।

तो, समय क्या है?

06:36 a. m. Ujjain, M. P.  INDIA.

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अद्य रचितं मया!

कथमिदम्? -- एतद्वै तत्!! 

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विनाशबुद्धिस्तु विपरीतकाले,

विनाशबुद्धेस्तु विपरीतकालः।

परिणामस्तु कारण-कार्ययोः

स्याद्वा लक्षण-निमित्तयोः।।

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विनाश-काल के आने पर बुद्धि का विपरीत हो जाना, और बुद्धि के विपरीत होने पर विनाश-काल का उपस्थित होना, इन दोनों के बीच का जो संबंध है, वह संबंध कल्पित ही होता है, क्योंकि, वह कार्य एवं कारण के बीच के संबंध जैसा वास्तविक संबंध न होकर, लक्षण और निमित्त के बीच का काल्पनिक सम्बन्ध ही होता है, क्योंकि काल (नामक वस्तु), बुद्धि से नितान्त ही भिन्न और स्वतंत्र है, जबकि बुद्धि, मनुष्य के विवेक या अविवेक पर निर्भर होने से तदनुसार ही वाञ्छित या अवाञ्छित फल प्रदान करती है। 

विवेकशील मनुष्य जानता है, कि बुद्धि और काल एक दूसरे से पूर्णतः भिन्न भिन्न प्रकार की दो वस्तुएँ हैं,और विचारणीय तथ्य यही है कि बुद्धि के विपरीत होने की त्रुटि से ही काल को बुद्धि का परिणाम मान लिया जाता है! और कहा जाता है कि विनाश का समय आने पर बुद्धि विपरीत हो जाती है! 

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Sunday 26 June 2022

कुछ नया!

कविता / 26-06-2022

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कुछ नया अगर, नहीं हुआ तो क्या होगा,

पुराना जो था, वही, वाकया बयाँ होगा!

तो वो तारीख़ों का ही हेरफेर होगा बस,

रिवाजों का, रस्मों का मर्सिया होगा!

पेशकश पहल, आप भी तो जरा कीजिए,

आपके ही करने से कुछ, शर्तिया होगा! 

जो मैं नहीं हूँ, तो मुझको ऐसा लगता है,

कौन था वो, जो मेरी जगह जिया होगा!

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क्या कर रहे हो?

"सुनना", "देखना" और "सोचना" --©-- उनसे बातचीत करने के लिए कोई विषय न मेरे पास है, और न उनके पास है। इसलिए धीरे...