Monday, 27 June 2022

अद्य रचितं मया!

कथमिदम्? -- एतद्वै तत्!! 

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विनाशबुद्धिस्तु विपरीतकाले,

विनाशबुद्धेस्तु विपरीतकालः।

परिणामस्तु कारण-कार्ययोः

स्याद्वा लक्षण-निमित्तयोः।।

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विनाश-काल के आने पर बुद्धि का विपरीत हो जाना, और बुद्धि के विपरीत होने पर विनाश-काल का उपस्थित होना, इन दोनों के बीच का जो संबंध है, वह संबंध कल्पित ही होता है, क्योंकि, वह कार्य एवं कारण के बीच के संबंध जैसा वास्तविक संबंध न होकर, लक्षण और निमित्त के बीच का काल्पनिक सम्बन्ध ही होता है, क्योंकि काल (नामक वस्तु), बुद्धि से नितान्त ही भिन्न और स्वतंत्र है, जबकि बुद्धि, मनुष्य के विवेक या अविवेक पर निर्भर होने से तदनुसार ही वाञ्छित या अवाञ्छित फल प्रदान करती है। 

विवेकशील मनुष्य जानता है, कि बुद्धि और काल एक दूसरे से पूर्णतः भिन्न भिन्न प्रकार की दो वस्तुएँ हैं,और विचारणीय तथ्य यही है कि बुद्धि के विपरीत होने की त्रुटि से ही काल को बुद्धि का परिणाम मान लिया जाता है! और कहा जाता है कि विनाश का समय आने पर बुद्धि विपरीत हो जाती है! 

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