कविता / 26-06-2022
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कुछ नया अगर, नहीं हुआ तो क्या होगा,
पुराना जो था, वही, वाकया बयाँ होगा!
तो वो तारीख़ों का ही हेरफेर होगा बस,
रिवाजों का, रस्मों का मर्सिया होगा!
पेशकश पहल, आप भी तो जरा कीजिए,
आपके ही करने से कुछ, शर्तिया होगा!
जो मैं नहीं हूँ, तो मुझको ऐसा लगता है,
कौन था वो, जो मेरी जगह जिया होगा!
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