Saturday, 19 November 2022

श्रद्धा अजन्मा!

श्रद्धा !!

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वह अजा,

वह अमरता, 

मनु की सहधर्मिणी, 

श्रद्धा अजन्मा,

निराकार हृदय में, 

साकार, वही सर्वत्र,

मनु के हृदय में, 

प्रकृतिरूपा सतत चंचल,

भावनारूपा निष्ठा अचला।

कर्म-रूपा, काम-रूपा,

सृष्टि-रूपा, नाम-रूपा।

वही हो गई विखंडित,

ज्ञान-रूपा, कर्म-रूपा।

मनुज में वह वृत्ति-रूपा,

अस्मिता वह बुद्धि-रूपा।

बुद्धि-रूपा, कर्म-रूपा,

काम-रूपा, धर्म-रूपा, 

कामाख्या, छिन्नमस्ता,

अपने ही चार रूप,

काटकर निज मस्तक, 

पाँचो मुखों की रक्त-पिपासा

को वह शान्त करती!

श्रद्धा वह नित्य अमर,

जन्म-मृत्यु रहित जीवन!

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कविता / उज्जैन -१९-११-२०२२,



 





अजा एका लोहितकृष्णशुक्ला ... हि सा।। 

ज्ञाज्ञौ द्वावजावीशनीशावजा ह्येका भोक्तृभोगार्थयुक्ता।

अनन्तश्चात्मा विश्वरूपो ह्यकर्ता त्रयं यदा विन्दते ब्रह्ममेतत्।।

(श्वेताश्वतरोपनिषद्)


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