Tuesday, 22 July 2025

को ज्ञाता को च दृष्टा!

जनक उवाच :

कथं ज्ञानमवाप्नोति कथं मुक्तिर्भविष्यति।। 

वैराग्यं च कथं प्राप्तं एतद्ब्रूहि मम प्रभु।।१।।

अष्टावक्र उवाच :

किङ्करो न जानाति किं कर्तव्यम्। 

स्वामी न जानाति अहं स्वामी। 

बुद्धिर्न जानाति किं कर्म को कर्ताऽपि

साक्षी पश्यत्येव न करोति किञ्चन्।

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