Thursday 23 May 2024

शक्नोतिहैव

श्रीमद्भगवद्गीता  5/23

शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात्।।

कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः।।२३।।

(अध्याय ५)

जो पुरुष मृत्यु हो जाने से पहले ही, जीवित अवस्था में रहते हुए ही काम और क्रोध के उद्भव के वेग को, उनसे अभिभूत न होते हुए, यहीं सह सकने में सक्षम होता है,  वही पुरुष योगयुक्त होता है, वही सुखी होता है।

तात्पर्य यह कि काम और क्रोध जिन्हें ज्ञानियों का भी नित्य वैरी कहा जाता है, और जो उन्हें भी प्रभावित कर देते हैं, उस काम और क्रोध के उद्भव के वेग को सहन कर सकनेवाला मनुष्य ही योगी होता है, और वही सुखी भी होता है। 

Endurance and Forbearance.

ऐसे योगयुक्त मनुष्य को आगे प्राप्त होनेवाली स्थिति का वर्णन अध्याय ५ में विस्तार से देखा जा सकता है।

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शक्नोतिहैव

श्रीमद्भगवद्गीता   5/23 शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात्।। कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः।।२३।। (अध्याय ५) जो पुरुष मृत्यु...