Virtual Existence.
संबंध या स्मृति?
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क्या वस्तुतः किसी का किसी से कोई संबंध होता, या हो सकता है? संबंध होता है, या संबंध की स्मृति होती है, जो सतत बदलती ही रहती है? फिर जीवन में 'दूसरों' का, या 'दूसरों' के संदर्भ में अपने आपका क्या महत्व है? क्या यही नहीं कि हर वस्तु, स्थान, व्यक्ति, घटना, परिस्थिति, प्रसंग की कोई भूमिका होती है, हम सब जिससे परस्पर सतत संबंधित और असंबंधित होते रहते हैं।
परंतु स्मृति के सातत्य के कारण उस वस्तु, स्थान, व्यक्ति, घटना, परिस्थिति, प्रसंग के काल्पनिक होने के तथ्य को आवरित कर उसके नित्य होने का भ्रम पैदा हो जाता है। इस प्रकार प्रत्येक मनुष्य अपना एक आभासी अस्तित्व (virtual existence) कल्पित कर लेता है, जिसकी सत्यता संदिग्ध होती है।
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