Thursday, 23 May 2024

शक्नोतिहैव

श्रीमद्भगवद्गीता  5/23

शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात्।।

कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः।।२३।।

(अध्याय ५)

जो पुरुष मृत्यु हो जाने से पहले ही, जीवित अवस्था में रहते हुए ही काम और क्रोध के उद्भव के वेग को, उनसे अभिभूत न होते हुए, यहीं सह सकने में सक्षम होता है,  वही पुरुष योगयुक्त होता है, वही सुखी होता है।

तात्पर्य यह कि काम और क्रोध जिन्हें ज्ञानियों का भी नित्य वैरी कहा जाता है, और जो उन्हें भी प्रभावित कर देते हैं, उस काम और क्रोध के उद्भव के वेग को सहन कर सकनेवाला मनुष्य ही योगी होता है, और वही सुखी भी होता है। 

Endurance and Forbearance.

ऐसे योगयुक्त मनुष्य को आगे प्राप्त होनेवाली स्थिति का वर्णन अध्याय ५ में विस्तार से देखा जा सकता है।

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Tuesday, 21 May 2024

सफ़र

जिन्हें सफ़र पे जाना होता है! 

हमसफ़र की जरूरत भी होती है,

जरूरी साजो-सामान की भी, और

बेहतर तबीयत की, सेहत की भी,

एक हद तक तो ज़रूरत होती है,

इरादों, हौसलों की, हिम्मत की, 

ताकत की, मंजिल की, रास्ते की भी,

ज़ुनून, जोश की भी ज़रूरत होती है। 

साथ देगा कोई कहाँ तक कितना,

कोई खुद भी, और दूसरों को भी,

जानने की, और समझने की भी, 

मुसाफ़िर को ज़रूरत होती है! 

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Saturday, 24 June 2023

क्या कर रहे हो?

"सुनना", "देखना" और "सोचना"

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उनसे बातचीत करने के लिए कोई विषय न मेरे पास है, और न उनके पास है। इसलिए धीरे धीरे बातचीत बस इन्हीं दो तीन वाक्यों तक सिमट गई है।

जब हम कुछ करते हैं तो "सोचना" रुक जाता है, और जैसे ही कुछ "करना" रुक जाता है "सोचना" शुरू हो जाता है। इस तरह से देखें, तो "सुनना" होता है, तो हम कुछ कर रहे होते हैं। इसी तरह से जब हम कुछ "देखते" हैं, तब भी "सोचना" रुक जाता है। तो मतलब यह, कि "सुनना" और "देखना", "सोचने" से कुछ अलग तरह का कोई कार्य है। मतलब यह हुआ कि जब हम एक ही समय पर "सोचना", "सुनना" और "देखना", इन तीनों कार्यों में से कोई दो या तीन कार्य एक साथ करते हैं तो यह मल्टी-टास्किंग का एक उदाहरण हो सकता है। और मजे की बात यह भी है कि इनमें से कोई भी कार्य करते समय "सोचना" इसलिए संभव हो पाता है क्योंकि स्मृति से आ रहे "विचारों" की धारा ही "सोचना" कहलाती है। 

हमारी स्मृति में जो भी संचित है, वही बाहरी प्रेरणाओं से मन की चेतन सतह पर उभरता है, जबकि स्मृति का शेष अंश हमारे ध्यान (attention) से परे होता है। विचार करना या "सोचना" इसलिए एक ऐसी यांत्रिक गतिविधि है, जो अनेक कारणों से प्रारंभ होती है, फिर भी स्वयं से इसे संबद्ध कर लिया जाता है और अपने-आपको स्वतंत्र विचारकर्ता मान लिया जाता है। यह मान्यता / विचार भी एक और भिन्न प्रकार की अनैच्छिक कल्पना ही होता है, जबकि "सुनना" या "देखना" ऐच्छिक या अनैच्छिक नहीं होता। इस प्रकार, विचारकर्ता / विचार करना, "सोचना" देखने और सुनने से नितान्त भिन्न वास्तविकता है, और विचारकर्ता / विचार केवल एक कल्पना। 

जब हम किसी तथ्य को समझने का प्रयास करते हैं, तो अनायास ही तथ्य से विच्छिन्न होकर स्मृति में लौट जाते हैं। यह स्मृति भी आपकी या मेरी या किसी की भी नहीं हो सकती, जबकि भ्रमवश हर कोई उसके मस्तिष्क में संचित स्मृति के "अपने" होने का दावा किया करता है।

"विचार" के नितान्त शान्त होने की स्थिति में जब केवल "देखना" और "सुनना" ही होता है, और "सोचना" रुका हुआ होता है, तथ्य से अनायास साक्षात्कार हो जाता है। यह कौआ कुछ कह रहा है, यह तो स्पष्ट होता है, किन्तु उसका तात्पर्य क्या है इसका कोई महत्व नहीं होता। तब इसकी काँव काँव उसकी पृष्ठभूमि में स्थित मौन को और भी गहन कर देती है।

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Thursday, 2 March 2023

Of People

My Tweet of the day:

There are mostly 3 kinds of people. 

Infused (with), 

Confused (by),

And those who have,

Refused to fit in the society.

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Tuesday, 24 January 2023

Merchant of Venice.

Anand (Sehgal).

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While I was looking for Adriatic Land / sea in Google Maps, my attention was drawn to the fact that Adriatic is somehow related to Adri / Adrian which might owe it's origin in the Sanskrit word  अद्रि :

as in हिमाद्रि, शेषाद्रि, सह्याद्रि, तुषाराद्रि, 

meaning a mountain.

Then to my mind came the title :

Merchant of Venice.

So I 'searched' for it and knew it was a drama written by William Shakespeare.

I could see during his time there was a great feud between the Jew and the Christians.

The storyline of this book / drama points out how a Jew loan-shark trapped a Christian and put a condition in the agreement that in case the borrower fails to repay the due in the scheduled time, a pound of flesh from his body could be cut as the penalty. 

And then the story takes a funny turn when his lawyer agrees to the same, but asks that while doing this, not a single drop of blood should be shed, as the agreement is silent about this. 

This reminded me of a dialogue in the Hindi Movie "Anand" where the emperor Akbar says to Salim : हम तुम्हें जिन्दा दफना देंगे। 

- (Ishaq Bhai...wala says) :

"लगी शर्त!  अगर आप मुझे दफना देंगे तो मुझे जि़न्दा नहीं रख सकते, और अगर ज़िन्दा रखेंगे तो दफना नहीं सकते!"

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Tuesday, 10 January 2023

About and Around.

Interestingly!

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A Tweet I read one day :

Nobody has to convince a man who is already convinced. Please wait and watch!

( @vivekagnihotri )

This was in response to a suggestion made to him about making a film on the :

Direct Action Day.

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History has many a skeleton,

In its cupboard.

So has the earth too, 

In its graves.

Whether in history, 

Or in the ground,

In their own secluded cavern,

All keep resting and wrestling,

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Good morning! 

√गुड् - रक्षायाम् 

संस्कृत में 'गुड्' धातु का प्रयोग रक्षा करने के अर्थ में होता है। 

इसी से 'गुड मॉर्निङ्ग', 'गुड ऐफ्टर नून', 'गुड ईवनिङ्ग' तथा 'गुड नाइट' का प्रचलन हुआ।  

अरबी या फ़ारसी में 'सलाम' की व्युत्पत्ति संस्कृत के 'स-अलम्' में दृष्टव्य है। क्योंकि स-अलम् का अर्थ भी वही होता है, जो कि 'गुड्' का होता है। परंपरा की दृष्टि से भी 'गुड मॉर्निङ्ग' का वही तात्पर्य है जो सलाम (सलामती) का है। सलाम, अस्सलाम या  सलाम वाले कुम, अस्सलाम वाले कुम इसलाम आदि का एक अर्थ 'रक्षा करना', तो दूसरा 'रक्षा करनेवाला' भी होता होगा। 'गुड' से गॉथिक में  Good, God, Gott की व्युत्पत्ति भी विचारणीय है।

जैसे Nord तथा North नृत् (नृ अर्थात् मनुष्य) से व्युत्पन्न हैं, वैसे ही 'God', 'Good' को भी '√गुड्' धातु से व्युत्पन्न किया जा सकता है।

मैं नहीं जानता कि गॉड या गुड शब्द का उद्भव और प्रयोग और किस तरह से हुआ होगा!

(कृपया ध्यान दें - यह विवेचना केवल भाषाशास्त्रीय दृष्टि से ही की गई है न कि किसी धर्म, मजहब या रिलीजन के सन्दर्भ में। इसे किसी धर्म या परंपरा के पक्ष / विपक्ष में न समझा जाए।) 

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Wednesday, 7 December 2022

शक्नोतिहैव

श्रीमद्भगवद्गीता   5/23 शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात्।। कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः।।२३।। (अध्याय ५) जो पुरुष मृत्यु...