छोड़ना और छूट जाना
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किसी ने WhatsApp पर R.J.Kartik का एक वीडियो "घणी गई ..." शेयर किया है, जिसमें एक राजा की कहानी है। राजा बूढ़ा हो रहा है लेकिन न तो अपने एकमात्र पुत्र को गद्दी सौंप रहा है, न विवाह की उम्र की हो चुकी एकमात्र पुत्री का विवाह करने की उसे चिन्ता है। एक दिन वह एक समारोह आयोजित करता है जिसमें वह आसपास के सभी राजाओं और राजकुमारों को निमंत्रित करता है, और अपने राज्य की राजनर्तकी के नृत्य का वहाँ आयोजन करता है।
राजा वहाँ अपने गुरु को भी निमंत्रित करता है, गुरु को कुछ स्वर्ण-मुद्राएँ देकर उनसे कहता है कि नर्तकी का नृत्य सुन्दर हो तो ये स्वर्णमुद्राएँ देकर उसे पुरस्कृत करें।
देर रात तक नृत्य चलता रहता है और तबला-वादक को नींद आने लगती है और उसकी उंगलियाँ शिथिल होने लगती हैं। नर्तकी इसे भाँप लेती है और नृत्य करते हुए ये पंक्तियाँ गाते हुए उसे सावधान करती है -
घणी गई थोड़ी रही पल पल बीतो जाय,
अंत अभी हो जा रहा, क्यों गाफिल ह्वै जाय।।
यह सुनकर तबला-वादक सजग हो जाता है। और वहाँ उपस्थित राजकुमार अपना मुकुट नर्तकी को उपहार में दे देता है। वहाँ उपस्थित विवाह की उम्र के योग्य हो चुकी राजकुमारी भी अपनी मोतियों की माला नर्तकी को भेंट कर देती है, और गुरु भी वे सारी स्वर्णमुद्राएँ उपहार के रूप में नर्तकी को सौंप देता है।
राजा उनसे पूछता है कि नर्तकी के नृत्य में उन्हें ऐसा भी क्या जान पड़ा कि वह उन्हें इतना सुन्दर लगा और उसे उन्होंने इतना बड़ा उपहार दे दिया?
तब राजकुमार बोला -
पिताजी, जब मुझे लगा कि बूढ़े हो जाने पर भी आप मुझे अपनी राजगद्दी नहीं सौंपना चाहते हैं तो मैंने तय किया कि कल की रात मैं आपकी हत्या कर राजा बन जाऊँगा। लेकिन नर्तकी के बोल सुनते ही मैंने सोचा कि देर से ही सही, राजा तो मुझे बनना ही है, तो मैं अपने पिता की हत्या का कलंक अपने माथे पर व्यर्थ ही क्यों लगाऊँ!
राजकुमारी बोली -
पिताजी, मुझे लगा कि आपको मेरे विवाह की चिन्ता ही नहीं है, तो मैंने तय किया था कि कल ही पास के राज्य के राजकुमार के साथ भाग जाना है। लेकिन नर्तकी के बोल सुनते ही सोचा पिताजी न सही, माँ को तो अवश्य ही मेरे विवाह की चिन्ता होगी, तो मैं धीरज क्यों न रखूँ!
और फिर गुरु बोले -
मैंने सारी उम्र भगवान की पूजा आराधना में व्यतीत की और अब अंत में कहाँ इस सारे प्रपञ्च में पड़ा हुआ हूँ, और उस सब पर पानी फेरने जा रहा हूँ! उसके नृत्य ने मेरी आँखें खोल दीं।
तब राजा ने गुरु से कहा -
हाँ, अब मुझे समझ में आया कि उस नर्तकी ने कितनी आसानी से हम सबको बहुत बड़ी विपत्ति से बचा लिया। तब राजा ने दूसरे ही दिन अपनी राजगद्दी बेटे को सौंप दी, बेटी के स्वयंवर विवाह का आयोजन किया और गुरु की आज्ञा लेकर तपस्या करने के लिए वन में चला गया।
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