Saturday, 24 June 2023

क्या कर रहे हो?

"सुनना", "देखना" और "सोचना"

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उनसे बातचीत करने के लिए कोई विषय न मेरे पास है, और न उनके पास है। इसलिए धीरे धीरे बातचीत बस इन्हीं दो तीन वाक्यों तक सिमट गई है।

जब हम कुछ करते हैं तो "सोचना" रुक जाता है, और जैसे ही कुछ "करना" रुक जाता है "सोचना" शुरू हो जाता है। इस तरह से देखें, तो "सुनना" होता है, तो हम कुछ कर रहे होते हैं। इसी तरह से जब हम कुछ "देखते" हैं, तब भी "सोचना" रुक जाता है। तो मतलब यह, कि "सुनना" और "देखना", "सोचने" से कुछ अलग तरह का कोई कार्य है। मतलब यह हुआ कि जब हम एक ही समय पर "सोचना", "सुनना" और "देखना", इन तीनों कार्यों में से कोई दो या तीन कार्य एक साथ करते हैं तो यह मल्टी-टास्किंग का एक उदाहरण हो सकता है। और मजे की बात यह भी है कि इनमें से कोई भी कार्य करते समय "सोचना" इसलिए संभव हो पाता है क्योंकि स्मृति से आ रहे "विचारों" की धारा ही "सोचना" कहलाती है। 

हमारी स्मृति में जो भी संचित है, वही बाहरी प्रेरणाओं से मन की चेतन सतह पर उभरता है, जबकि स्मृति का शेष अंश हमारे ध्यान (attention) से परे होता है। विचार करना या "सोचना" इसलिए एक ऐसी यांत्रिक गतिविधि है, जो अनेक कारणों से प्रारंभ होती है, फिर भी स्वयं से इसे संबद्ध कर लिया जाता है और अपने-आपको स्वतंत्र विचारकर्ता मान लिया जाता है। यह मान्यता / विचार भी एक और भिन्न प्रकार की अनैच्छिक कल्पना ही होता है, जबकि "सुनना" या "देखना" ऐच्छिक या अनैच्छिक नहीं होता। इस प्रकार, विचारकर्ता / विचार करना, "सोचना" देखने और सुनने से नितान्त भिन्न वास्तविकता है, और विचारकर्ता / विचार केवल एक कल्पना। 

जब हम किसी तथ्य को समझने का प्रयास करते हैं, तो अनायास ही तथ्य से विच्छिन्न होकर स्मृति में लौट जाते हैं। यह स्मृति भी आपकी या मेरी या किसी की भी नहीं हो सकती, जबकि भ्रमवश हर कोई उसके मस्तिष्क में संचित स्मृति के "अपने" होने का दावा किया करता है।

"विचार" के नितान्त शान्त होने की स्थिति में जब केवल "देखना" और "सुनना" ही होता है, और "सोचना" रुका हुआ होता है, तथ्य से अनायास साक्षात्कार हो जाता है। यह कौआ कुछ कह रहा है, यह तो स्पष्ट होता है, किन्तु उसका तात्पर्य क्या है इसका कोई महत्व नहीं होता। तब इसकी काँव काँव उसकी पृष्ठभूमि में स्थित मौन को और भी गहन कर देती है।

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शक्नोतिहैव

श्रीमद्भगवद्गीता   5/23 शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात्।। कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः।।२३।। (अध्याय ५) जो पुरुष मृत्यु...